हज़ारों करोड़ बहाओगे गोबर में,cm निवास में,दूसरे राज्यों के चुनाव में,विधायकों के वेतन में,जगह जगह पोस्टरबाज़ी में;पर वेतन काटोगें कर्मचारियों का।

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हज़ारों करोड़ बहाओगे गोबर में,cm निवास में,दूसरे राज्यों के चुनाव में,विधायकों के वेतन में,जगह जगह पोस्टरबाज़ी में;पर वेतन काटोगें कर्मचारियों का।

पूरे देश में अगर सबसे ज़्यादा त्रस्त अधिकारी-कर्मचारी हैं तो वो छत्तीसगढ़ की सरकार में हैं।इन्हीं कर्मचारियों से दिन – रात काम लोंगे,ट्रांसफर पोस्टिंग से लेके हर काम के लिए वसूली करोगें और ड्रीम प्रोजेक्ट के नाम पर गाय-गोबर जैसे जुमला और फ़र्ज़ी योजना में खून चूसोगें, पर तनख़्वा पूरी नहीं दोगें। जो लोग सिस्टम चला रहे हैं उन्ही को डरा धमका रहे हो। शर्म आनी चाहिए इन नेताओं को। भूलो मत नेता सिर्फ़ पाँच साल के लिए आते हैं और अब बस एक साल बचा हैं । ये पद इन्ही कर्मचारियों के बलबूते मिला हैं। इसलिए पप्पू के पिट्ठू मनमानी बंद करो। नहीं तो 15 क्या इस बार 25 वर्ष का वनवास मिलेगा।ऐसा नहीं हैं इस सर्कस/गोबर सरकार में सिर्फ़ शासकीय कर्मचारी ही त्रस्त हैं।लगभग हर वर्ग अब बाहर निकाल के आ रहा हैं। 4 साल का जुमला अब बहुत हुआ। मीडिया को ख़रीद के,रात दिन इस चवन्नी मॉडल को छत्तीसगढ़ मॉडल के नाम से प्रचार प्रसार करके और पुलिस का बल इस्तेमाल करके कब तक जनता को दबा पाओगें। ये पद तुम्हारें बाप का दिया हुआ नहीं,जनता का दिया हैं।सरकारी कर्मचारी के अलावा अब सरपंच, दैनिक वेतन भोगी और मनरेगा के कर्मचारी भी आंदोलन में आ रहे हैं। सरपंच कहते हैं गाँव में कुछ विकास का काम नहीं हो रहा। जो थोड़े बहुत होते हैं उसको ऊपर से फ़िक्स ठेकेदार आकर करते हैं।जगह जगह लोग सड़क निर्माण और प्रधान मंत्री आवास निर्माण के लिए आंदोलन करते मिल जाएँगे। किसान हितैषी कहने वाले ये पप्पू के चमचों के ख़िलाफ़ तो इस बार किसान ही खाद ना मिल पाने के कारण जमकर आंदोलन किए।शराब बंदी ना कर पाने के कारण महिलायें लामबंद हो गयी हैं। रोज़गार ना मिल पाने के कारण सभी नौजवान आंदोलन पर उतर आए हैं। ऐसा ना होता तो बीजेपी रायपुर में इतना बड़ा आंदोलन नहीं कर पाती। 91 चपरासी के पद के लिए अगर 2 लाख से ज़्यादा पढ़े लिखे इंजीनियर आवेदन देते हैं तो समझ सकते हैं क्या हाल हैं रोज़गार का।

जब से ये सरकार आई हैं प्रशासन में मानो सर्कस चल रहा है।ट्रासंफर पोस्टिंग के अलावा कुछ होता ही नहीं।बोली लगाओ और पोस्ट ले लो।इन्होंने प्रभारी नाम का अलग ही नाजायज़ पद बना दिया।हर विभाग में सीनियर अधिकारी के जगह ज़ूनियर अधिकारी को प्रभारी के पदनाम से बैठा दिया।जूनियर को बस बोली लगाना हैं फिर सीनियर जाएगा लूप लाइन में चाहे वो कितना भी प्रतिभावान क्यों ना हो।चपरासी बनने के लायक़ लोग सरकार चलाना चालू कर दिए।पूरे राज्य में बस वसूली का खेल चलने लगा।जहाँ से जितना निकल जाए।ये सब जनता का ही पैसा था। दो-दो बार इन चपरासी लायक़ चांडाल चौकड़ी के यहाँ ED और IT का रेड पड़ चुका हैं। वसूली के इस खेले में नेताओं ने कर्मचारियों का भी खून चूसा।नियम विरुद्ध काम करवाया।बाकि बचा खुचा खून गोबर-गौठान में चूस लिया। ये छत्तीसगढ़ के इतिहास में ऐसा जुमला योजना था जिसमें प्रशासन ने सबसे ज़्यादा ऊर्जा,समय और पैसा लगाया पर फ़ायदा दो कौड़ी का भी नहीं हुआ।क्योंकि इसमें दिमाग़ नेताओं का लगा था। नेता चाहे कितना भी बड़ा हो,होगा तो अक़्ल से बैल ही।कोई भी योजना उनको अधिकारी और कर्मचारी से मश्वरा करके ही लागू करना चाहिए।अगर इस फेंकूँ और फ़र्ज़ी गोधन न्याय योजना को लागू करना था तो पहले अधिकारियों से चर्चा कर लेना था और एकाध गाँव में पहले मॉडल के रूप में लागू करके देखना था। सीधे पूरे छत्तीसगढ़ में लागू कर दिया गया।आज हालत यह हैं कि सारे गाय रोड पर घुम रहे हैं,मर कट रहे हैं।गौठान नाम के जुमला ख़ाली पड़े हैं। उससे अच्छा तो बीजेपी की सरकार के गौशाला था जिसने कम से कम गाय तो रहती खाते पीते रहती थी। इस जुमले गौठान में इतना इन्वेस्टमेंट किया गया कि गाँव के विकास और राज्य के इन्फ़्रास्ट्रक्चर के लिए पैसा ही नहीं बचा। टी एस सिंहदेव ने तो ये भी बता दिया कि सब नरवा,गरुआ और गोबर ज़्यादा हो गया हैं इसलिए कर्मचारियों के तनख़्वा के लिए भी पैसे देने की औक़ात नहीं हैं इस सरकार में। ये तो इतने बड़े मंत्री थे इसलिए सबके सामने गोबर पर बोल दिए।बाकि मंत्री और विधायक भी पीठ पीछे गाली देते हैं इस गोबर योजना को पर टिकट कटने के ड़र से सामने बोलते नहीं। ख़ैर गौठान और गोबर ने राज्य को इतना नुक़सान पहुँचा दिया हैं कि अब विधायको को टिकट मिले ना मिले इस चुनाव में तो पत्ता साफ़ हैं।

इस गोबर योजना के दुष्प्रभाव को इसी से समझा जा सकता हैं कि सारे अधिकारी-कर्मचारी पिछले 4 साल से बस गोबर ख़रीदी,गौठान बनाने और निरीक्षण करने में ही लगे रहे।जनता के मूल समस्याओं को सुलझाने के बजाय बस गोबर-गोबर करते रहे। और आज राज्य गोबर हालत हो गया है।कंगाली के कगार पर आ गया हैं छत्तीसगढ़।गोबर जैसे कामों के लिए क़र्ज़ लेकर दिवालिया होने के कगार पर हैं।कर्मचारियों को पूरी तनख़्वा भी देने की औक़ात नहीं।विकास के सारे काम ठप्प पड़े हैं।हर विभाग के बजट में ज़बरदस्त कटौती हुई हैं जिससे स्थानीय मज़दूरों तक को काम नहीं मिल पा रहा। 16 लाख आसानी से मिल रहे पक्का आवास तक के लिए पैसे नहीं दे पाए। क़ानून व्यवस्था की तो ऐसी धज्जियाँ उड़ी हैं कि हम यूपी बिहार को भी पछाड़ रहे हैं। इन दोनो राज्यों के बर्बाद होने के पीछे क़ानून व्यवस्था ही थी।इसके बावजूद ये नेता गोबर पर ही टिका हुआ हैं।पैसे उपलब्ध रहते हैं तो बस दूसरे राज्यों के चुनाव करवाने में। पहले असम,बंगाल,उत्तर प्रदेश,उत्तराखंड और अब हिमाचल प्रदेश।लगता हैं यहाँ के नेताओं ने तो पप्पू की झोली भरने का ठेका ले रखा हैं।
विनाशकाले विपरीत बुद्धि।

जे.पी.अग्रवाल की रिपोर्ट


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