गोबर मॉडल आफ छत्तीसगढ़- मुफ़्त की रेवड़ी खिलाने के चक्कर में 10 वर्ष पीछे हुआ राज्य

पिछले 3.5 साल से पूरा छत्तीसगढ़ गोबर मय हो गया हैं । विकास का पहिया पूरी तरह से ठप्प पड़ा हुआ हैं । कोई नया रोड नहीं, आवास नहीं, पानी कनेक्शन नहीं, अस्पताल नहीं, मेडिकल कॉलेज नहीं, बढ़िया रोज़गार नहीं । काम हुआ हैं तो बस – गोबर ख़रीदी और गोठान । अब तो उसमें भी घोटाला की बातें होने लगी हैं । सरकार का दावा हैं कि 3.5 साल में 8,000 से भी अधिक गोठान बने और 300 करोड़ से अधिक की गोबर ख़रीदी हुई । हर गोठान में फ़ेन्सिंग, कोटना, शेड, चरवाहा कक्ष, चारा, गोठान समिति, इत्यादि पर 50 लाख से लेकर 1 करोड़ तक खर्च कर दिया गया हैं । अनुमानित 5,000 करोड़ अब तक गाय और गोबर पर लग चुका है । और फ़ायदा क्या हुआ हैं ??

लगभग 200 करोड़ का वर्मीकाम्पोस्ट बनाया गया है !!! पर बेचा किसको गया हैं ये पता नहीं । सरकार ने गोबर की क़ीमत 2 रुपये रख़ा है जबकि महिला समूह और सामान का खर्चा मिला के वर्मीकाम्पोस्ट की क़ीमत 10 रुपये हैं । इसका मतलब 300 करोड़ के गोबर से अब तक 1500 करोड़ का वर्मीकाम्पोस्ट बन जाना था और बेचकर आमदनी हो जानी था । पर 200 करोड़ का ही वर्मीकाम्पोस्ट बना हैं वो भी कौन ख़रीद रहा है पता नहीं । किसान तो ले नहीं रहे उस मिट्टी और कंक्कड़ से भरे खाद को । वैसे ही हज़ारों करोड़ का गोठान बना के गाय पूरे रोड पर घुमा रहे हैं । गाय रोज़ मर रहे है रोड पे और गोठान समिति बना के कुछ लोगों को पैसे बाटें जा रहे हैं । इसका मतलब सरकार मुफ़्त की रेवड़ी खिला रही हैं लोगों को । इन हज़ारों करोड़ से हर गाँव में सीसी रोड और नाली निर्माण हो सकता था । आप गाँव में जाए तो गंदे रोड और बजबजाती नाली मिलेगी । पहुँचविहीन गाँव में पुलिया निर्माण, मेन रोड तक पक्की सड़क, बिजली कनेक्शन और पानी की सुविधा हो सकती थी । केंद्र सरकार के जलजीवन मिशन से जो पैसे दिए गए थे उसका उपयोग हर घर तक पानी पहुँचाने में नहीं हो पा रहा क्योंकि राज्य सरकार के पास पैसे ही नहीं हैं। प्रधानमंत्री आवास योजना तहत 80 लाख बेघर लोगों के लिए 16 लाख आवास इसलिए नहीं बन सके क्योंकि राज्य सरकार में पास पैसे नहीं हैं । दोनो ही योजना में केंद्र सरकार के दिए पैसे लैप्स हो गए । पूरे भारत में छत्तीसगढ़ ही ऐसा राज्य हैं जहाँ इतने महत्वपूर्ण योजना का काम रुक गया हैं । ये सब आज हालत इसलिए हुई क्योंकि सरकार ने मुफ़्त की रेवड़ी खिलाने के चक्कर में अपने पैसे ख़त्म कर दिए । फ़्री का पैसा बाँटने के लिए भारी भरकम क़र्ज़ ले लिया । अब तो सरकारी कर्मचारियों का महंगाई भत्ता देने तक के लिए पैसे नहीं हैं। इस वजह से पूरे प्रदेश में 88 कर्मचारी संघठन ने एक साथ आंदोलन किया और आगे अनिश्चितक़ालीन आंदोलन पर जाने की तैयारी में हैं। जब मुफ़्त की योजनाओं में क़र्ज़ लेके पैसे बाँटने का काम करोंगे तो यही हाल होगा । पैसे वहाँ लगाने चाहिए जहाँ से कुछ रिटर्न भी आए नहीं तो राज्य कैसे चलेगी ??
जैसे गोबर योजना में मुफ़्त के पैसे बाँटे जा रहे हैं वैसे ही बहुत से समूहों का क़र्ज़ा माफ़ कर दिया गया हैं । धान में ज़रूरत से ज़्यादा क़ीमत दे रहे हैं । कई वनोपज ख़रीदी में भी नुक़सान में है । सरकारी ज़मीन तक को कम रेट पर बेच रहे हैं। बहुत से भू माफिया इस ज़मीन को क़ब्ज़ा करके सरकार से कम रेट पे ज़मीन ख़रीद रहे हैं।जब सरकारी ज़मीन ही नहीं बचेगा तो भविष्य में विकास के काम कैसे होंगे ?? इन सब का नतीजा ये हुआ की राज्य में कोई नयी रोड और इन्फ़्रास्ट्रक्चर बना ही नहीं। सब पहले से बने इन्फ़्रास्ट्रक्चर पर काम हो रहा हैं। इस वजह से राज्य को कोई नया राजस्व नहीं हो रहा । राजस्व तब बढ़ता है जब विकास के काम होंगे । तब इन्वेस्टमेंट होता हैं और राज्य को राजस्व मिलता हैं जिससे इन योजनाओ पर पैसे खर्च होते हैं। संभवतः इसी तरह के मुफ़्त योजनाओं की बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उत्तरप्रदेश में बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे के उदघाटन के दौरान बोल रहे थे । इस तरह के मुफ़्त की रेवड़ी खिलाने वाले राजनीतिक दल और सरकारों से आगाह कर रहे थे । ऐसी सरकार ना तो नया एक्सप्रेसवे बनाती हैं ना नया अस्पताल । बस मुफ़्त में पैसे खर्च करती जाती हैं जिससे चुनाव में तो वोट मिल जाते हैं पर राज्य का विकास ठप्प पड़ जाता हैं। बाद में लोगों को एहसास होता हैं जैसे श्रीलंका में हुआ । भारत सरकार ने भी ऐसे राज्यों की लिस्ट बनायी हैं जो मुफ़्त की योजनाओं में पैसे खर्च करके अपने आपको क़र्ज़ में डुबो रही हैं। छत्तीसगढ़ भी उसी दिशा में भाग रहा हैं। गोबर पर इतना इन्वेस्टमेंट भी उसी सोच का नतीजा हैं।

सरकार कहती हैं हम लोगों के जेब में पैसे डाल रहे हैं। पर यहाँ मूलभूत सुविधाओं के लिए भी पैसे नहीं बचे हैं। जिन कर्मचारियों से भरपूर काम लेते हैं उनके महंगाई भत्ता देने तक को पैसा नहीं हैं । सबको याद होगा कोरोना काल में यही सरकारी कर्मचारी अपनी जान जोखिम में डाल के काम किए । सरकार एक तरफ़ लोगों के जेब में पैसा डाल रही हैं तो दूसरी तरफ़ दारू पिला के पैसा खर्च करवा रही हैं । इससे राज्य के विकास में तो कोई योगदान नहीं हुआ मगर लोगों की सेहत ज़रूर ख़राब हो रही हैं और क़ानून व्यवस्था तो बद से बदत्तर हो गयी हैं । बंद करो ये गोबर का काम और लोगों की मूलभूत ज़रूरतों को पहले पूरा करो ।
जे.पी.अग्रवाल की रिपोर्ट
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