म.प्र. वन विभाग चीतों के संरक्षण से दुनिया में नाम कमा रहा तो छःग वन विभाग गाय-गोबर के काम से अपना मज़ाक़ बना रहा।

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म.प्र. वन विभाग चीतों के संरक्षण से दुनिया में नाम कमा रहा तो छःग वन विभाग गाय-गोबर के काम से अपना मज़ाक़ बना रहा।

हिंदी में एक कहावत हैं -गुण गोबर करना।छत्तीसगढ़ के वन विभाग पर ये एकदम फ़िट बैठता हैं।यहाँ के अनपढ़ नेता (गोबर दिमाग़)और गधे वन अधिकारी पूरे जंगल का गुण गोबर कर चुके हैं।गोबर ख़रीदी और गौठान के नाम पर वन विभाग वनभूमि में आवर्ती चराई केंद्रो का निर्माण कर रहा हैं।अब तक 1,500 से ज़्यादा आवर्ती चराई केंद्रो का निर्माण हो चुका हैं। लगभग 10-10 हेक्टेयर के इन आवर्ती चराई केंद्रो में वन विभाग गाय को चराने और गोबर ख़रीदी के नाम पर कोटना,शेड,वर्मी टाँका,प्लैट्फ़ॉर्म,इत्यादि का निर्माण कर रहे हैं।इसके लिए वनभूमि को तोड़ने और साफ़ करने के अलावा उसमें लगे पेड़ और छोटे पौधों तक को काट रहे हैं।गौठान के ये कार्य ग़ैर वानिकी कार्य हैं।इसके लिए केंद्र सरकार से कोई भी अनुमति नहीं ली गयी हैं।ये वन संरक्षण अधिनियम 1980 का स्पष्ट उल्लंघन हैं। जब व्यवसाइयों को 1 हेक्टेयर वनभूमि पर काम करने के लिए केंद्र सरकार से अनुमति कि जटिल प्रक्रिया से गुजरनी पड़ती हैं तो फिर यहाँ तो 10-10 हेक्टेयर की जंगल की ज़मीन मुफ़्त में बाटें जा रहे हैं।और सरकार ही ये अवैध काम करवा रही हैं और वन विभाग के कुछ अधिकारी छक्कों की तरह ताली पीट रहे हैं और मुख्यमंत्री के साथ फ़ोटो खिचवा रहे हैं और जो वन विभाग के काबिल और अच्छे काम करने वाले अधिकारी हैं वो बड़े नेताओं और मंत्रियों के चमचाई करने वाले अधिकारियों के चक्कर में विभाग के लूप लाइन में हैं।कई अधिकारी ऐसे भी हैं जो फील्ड में हैं पर इन चमचों के चक्कर में काम नहीं कर पा रहे हैं।
ज़ाहिर सी बात हैं इससे जंगल कम हो रहा हैं। लगभग 15 हज़ार हेक्टेयर वनभूमि तो ख़राब हो ही चुका।इतने वर्गफल में तो वन विभाग साल भर में वृक्षारोपण तक नहीं करता।गौठान की असलियत तो सब जान चुके हैं।रात दिन अख़बारों और न्यूज़ चैनल में किसी ना किसी गौठान की घटिया हालत दिखा ही दिया जाता हैं।सभी गौठान ख़ाली पड़े हैं और गाय रोड पर घूम रहे हैं।छत्तीसगढ़ में ऐसा कोई रोड नहीं जहाँ गाय झुंड बना के ना बैठी हो।जबकि हर गौठान में 50 लाख से 1 करोड़ तक का पैसा खर्च किया जा चुका हैं।ग्रामीण ये भी सवाल उठाना चालू कर दिए है कि ये पैसे अगर गाँव के रोड,बिजली और पानी में लगाया गया होता तो आज गाँव की तस्वीर ही कुछ और होती।गौठान सुने पड़े हैं जिसका कोई उपयोग नहीं हो रहा।

जहाँ छत्तीसगढ़ वन विभाग सिर्फ़ वसूली और चाटुकारिता में अपनी हँसी उड़वा रहा हैं तो मध्यप्रदेश वन विभाग नामीबिया से चीता लाके पूरे दुनिया में नाम कमा रहा हैं।आज ही श्यौपुर ज़िले के कुनो नेशनल पार्क में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन 8 चीतों को छोड़ा।चीता भारत से 1952 में विलुप्त हो चुका था और आख़री चीता छत्तीसगढ़ से ही समाप्त हुआ।देश में इनका विस्थापन बहुत बड़ी उपलब्धि हैं।ख़ासकर मध्यप्रदेश वन विभाग के लिए।वैसे मध्यप्रदेश अपने जंगल और वन्यप्राणियों को बचाने में पूरे देश में जाना जाता हैं।कान्हा,बान्धवगढ़ और पन्ना टाइगर रिज़र्व पहले भी देश में सबसे प्रसिद्ध रहे हैं।और अब चीता के लिए श्योपुर ज़िला। छत्तीसगढ़ का 44% वनआवरण मध्यप्रदेश से भी ज़्यादा हैं पर यहाँ ऐसा एक भी टाइगर रिज़र्व और नेशनल पार्क नहीं जो देश में प्रसिद्ध हो।इसके पीछे यहाँ के अनपढ़ नेता और गधे वन अधिकारी हैं जो सिर्फ़ वसूली में लगे हैं।वनविभाग को सबसे भ्रष्ट विभागों में से जाना जाता हैं।हमने देखा कैसे यहाँ समय-समय पर वन अधिकारियों का पैसे लेते हुए स्टिंग बाहर आ ही जाता हैं। कुछ दिन पहले कांकेर के सीसीएफ राजू अगासिमनि, फिर रायपुर सीसीएफ नायक का वीडीओं आया। सरगुज़ा सीसीएफ अनुराग श्रीवास्तव का भी रेंजर से करोड़ों की वसूली करके ज़मीन लेने की खबरें आयी।ये सब अपने ऊपर बैठे आकाओं के लिए कलेक्शन करते हैं।फिर उनके आँका नेताओं को भी हिस्सा देते हैं।वर्तमान में उच्च पद में बैठे अधिकारी भी कांड करके बैठे हुए हैं।बहुचर्चित आरामिल कांड के मुख्यआरोपीयों में थे।अभी वसूली गैंग के डॉन हैं।इनके आने के बाद तो मानो वनविभाग वसूली और ठेकेदारी विभाग बन गया। एसडीओ को प्रभारी डीएफओं बनाने के पीछे भी मास्टरमाइंड यही थे।वर्तमान में यही अधिकारी फील्ड के एस.डी.ओ. और डी.एफ.ओ.के बॉस हैं इन्हीं के कहने पर सब कार्य होता हैं।

जब मध्यप्रदेश का विभाजन होकर छत्तीसगढ़ बना तब अच्छे और कर्मठ वन अधिकारी मध्यप्रदेश केडर चुन लिए। जितने गधे, वसूलीबाज और ख़ुराफ़ाती वन अधिकारी थे वो सब छत्तीसगढ़ आ गए।इस वजह से देश में सबसे अच्छे जंगल होने के बावजूद हम वानिकी और वन्यप्राणी में पीछे रह गए।यहाँ के वनअधिकारी सिर्फ़ वन अधिकार पट्टा बाँटते रह गए और जंगल बर्बाद कर दिए।अब बचा खुचा जंगल अवैध आवर्ती चराई केंद्र बना के ख़राब कर रहे।जब दूसरे राज्य के वनविभाग वन्यप्राणी के संरक्षण में लगे रहते हैं तो हम गाय और गोबर के काम में लगे हैं।बाहर राज्य में लोग सुन के हँसने लगे है की छःग वन विभाग वेटरिनेरी और हॉर्टिकल्चर विभाग बन के रह गया हैं।

जे.पी.अग्रवाल की रिपोर्ट


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