फ़ेक सर्वे: 0.1 % का बेरोज़गारी दर दिखा के ठग रही है सरकार।अकेले चपरासी के ढाई लाख आवेदन से ही 1 % होता है बेरोज़गारी दर।
फ़ेक सर्वे: 0.1 % का बेरोज़गारी दर दिखा के ठग रही है सरकार।अकेले चपरासी के ढाई लाख आवेदन से ही 1 % होता है बेरोज़गारी दर।

आजकल कुछ बड़े न्यूज़ चैनल,अखबारों और न्यूज़ पोर्टल में छत्तीसगढ़ का बेरोज़गारी दर देश में सबसे कम 0.1 % होने का प्रचार करवाया जा रहा हैं।ये सर्वे कोई सरकारी संस्था का नहीं हैं बल्कि एक ग़ैर सरकारी संस्था CMIE द्वारा किया गया हैं।ऐसी ग़ैर सरकारी संस्था लाख दो लाख रुपये लेकर भी कुछ भी आँकड़ा दिखा सकती हैं क्योंकि इनके ऊपर केंद्र सरकार का कोई कंट्रोल नहीं हैं।इस संस्था की विश्वसनीयता इसी से पता चल जाता हैं कि हाल ही में छत्तीसगढ़ में चपरासी के 91 पद के लिए ढाई लाख आवेदन आए थे और ये संस्था इतना कम बेरोज़गारी दर दिखा रही हैं।छत्तीसगढ़ की जनसंख्या लगभग तीन करोड़ हैं।अगर इसमें बच्चे और बूढ़ों को छोड़ दे और लेबर फ़ोर्स 2.5 करोड़ माने तब भी अकेले चपरासी के 2.5 लाख आवेदन के हिसाब से बेरोज़गारी दर 1 % होता हैं।तो ये फ़र्ज़ी सर्वे करके 0.1% का आँकड़ा कहाँ से ले आए ?? ये तो सिर्फ़ अकेले चपरासी का परीक्षा देने वालों से बेरोज़गारी दर हैं।अधिक्तर युवा तो चपरासी बनना भी नहीं चाहते और इसलिए बेरोज़गार होने के बाद भी परीक्षा में नहीं बैठे होंगे।लाखों युवा छत्तीसगढ़ पीएससी की तैयारी में लगे हैं।कोई डेप्युटी कलेक्टर तो कोई पुलिस तो कोई इंजीनियर तो कोई शिक्षा कर्मी बनने की तैयारी कर रहे तो बहुत से लोग तो निजी कम्पनी में काम करना चाहते हैं।इसके अलावा छत्तीसगढ़ के किसान तो बस 4 महीने ही खेती कर पाते हैं फिर बेरोज़गार रहते हैं।और गाँव की अधिक्तर महिला तो बेरोज़गार ही रहती हैं।छत्तीसगढ़ से दूसरे राज्यो में पलायन करने वाले बिहार और उत्तर प्रदेश से कम नहीं हैं।आदिवासी अंचल में तो कुछ महीने के तेंदूपत्ता और वनोपज बिनने के अलावा और कुछ काम नहीं होता हैं।ये सब को देखा जाए तो छत्तीसगढ़ में 10% लोग बेरोज़गार होंगे।
आख़िर ये कौन सा सर्वे हैं जिसको इतनी बेरोज़गारी नहीं दिखती।इसी से समझ आता हैं कि ये सर्वे फ़र्ज़ी हैं। और ये जो प्रचार हो रहा हैं कुछ अख़बारों और न्यूज़ चैनल में हेडलाइन बना कर वो पूरी तरह प्रायोजित लग रही हैं। अगर बेरोज़गारी मुद्दा ना होता तो बीजेपी इतनी बेवक़ूफ़ पार्टी नहीं हैं जो अपने राष्ट्रीय अध्यक्षों के साथ रायपुर में 1 लाख कार्यकर्ताओं के साथ बेरोज़गारी पर इतना बड़ा आंदोलन करती।घटिया क़ानून व्यवस्था और ख़राब सड़क और कर्मचारियों में रोष जैसे बड़े बड़े मुद्दा थे बावजूद इसके रोज़गार को टार्गेट इसीलिए किया गया क्योंकि बेरोज़गारी अभी चरम सीमा पर हैं।वो जानते हैं युवाओं में अभी बहुत आक्रोश हैं।लाखों युवा बस परीक्षा की तैयारी ही कर रहे हैं।सरकार ठीक से भर्ती भी नहीं कर पा रही।जो लोग 4 साल पहले भी परीक्षा निकाले थे वो आज भी जॉवनिंग का इंतेज़ार कर रहे हैं।सरकारी भर्ती पूरी तरह से ठप हो गयी हैं।पहले के शासन में नियमित रूप से हर साल हर विभाग में वेकन्सी निकलती थी।पर अभी तो ये सरकार पूरा कंगाल हैं।अपने वर्तमान कर्मचारियों तक को पूरा तनख़्वा नहीं दे पा रहे।


रोजगार की इतनी ख़राब व्यवस्था होने के बाद भी अगर CMIE जैसी संस्था देश में सबसे कम बेरोज़गारी का दावा करती हैं तो इसका मतलब साफ़ हैं कि पैसे लेकर ये आँकड़े जारी कर रहे हैं।ये संस्था दो चार लोगों की हैं जो अपने कार्यालय में बैठ के आँकड़े बना रही हैं।असल सर्वे के लिए आपको गाँव गाँव घूमना पड़ेगा।ये काम सिर्फ़ सरकार की कोई बड़ी संस्था ही कर सकती हैं जो सरकार से स्वतंत्र होके काम करती।हँसी तो इन सब बिकाऊ चैनल और अख़बार पर आती हैं जो बिना सोचे समझे इस चार लोगों की ग़ैर सरकारी संस्था के सर्वे को हेड्लाईन बना के चलाए।थोड़ा तो खुद से अनालिसिस कर लेते कि ये आँकड़े आते कैसे हैं।चपरासी के ढाई लाख आवेदन को इनमें से किसी भी चैनल और अख़बार ने हेडलाइन नहीं बनाया था।थोड़ा दिमाग़ लगा लेते जब सरकारी भर्ती हो नहीं रही तो इतना रोज़गार क्या गोबर के काम से मिल रहा है ?? कुछ दिन पहले एक अख़बार ने छापा था कि लाखों करोड़ो के गौठान में औसतन एक किसान गोबर बेच रहा हैं तो ये दावा की नरवा गरवा के कारण बेरोज़गारी दर कम हैं पूरी तरह फ़र्ज़ी हैं और सरकार अपना मुँह छुपाने ऐसे ग़ैर सरकारी संस्थाओ के आँकड़े को प्रचार कर रही हैं। इस कम बेरोज़गारी दर की ख़बर को जैसे ही मुख्यमंत्री कार्यालय के फ़ेसबुक पेज ने डाला वैसे ही लोगों की गालियों वाली कॉमेंट पड़ने चालू हो गए।अगर विश्वास नहीं होता तो देख सकते हैं इनके फ़ेसबुक पेज में जाकर।
जे.पी.अग्रवाल की रिपोर्ट
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