भेंट-मुलाक़ात हैं या जुमला:छत्तीसगढ़ का हर वर्ग आंदोलन करने रायपुर आ रहा तो गोबर सरकार आख़िर किससे मिलने जा रही हैं विधानसभा ?? दिमाग़ में गोबर भरा हैं या गोमूत्र।

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भेंट-मुलाक़ात हैं या जुमला:छत्तीसगढ़ का हर वर्ग आंदोलन करने रायपुर आ रहा तो गोबर सरकार आख़िर किससे मिलने जा रही हैं विधानसभा ?? दिमाग़ में गोबर भरा हैं या गोमूत्र।

ऐसा लगता हैं मानो छत्तीसगढ़ के नेताओं और अधिकारियों के दिमाग़ में सिर्फ़ गोबर और गोमूत्र भरा हुआ हैं।भेंट-मुलाक़ात का ये जुमला सिर्फ़ दिखावे के लिए हैं।जब छत्तीसगढ़ की सारी जनता एक-एक करके रायपुर आंदोलन करने आ रही हैं तो एक विधानसभा के तीन गाँव जा के क्या हो जाएगा ?? ये तो सिर्फ़ जनता के समय और पैसों की बर्बादी हैं।आख़िर मुख्यमंत्री हेलिकॉप्टर में अपने पैसों से थोड़ी ही घुम रहे हैं।जब खुद सरकार के मंत्री सबके सामने कहते हैं कि राज्य में कंगाली छायी हुई हैं तो फिर भेट-मुलाक़ात कार्यक्रम के जुमलेबाज़ी में खर्चा करने की क्या ज़रूरत हैं ??कार्यक्रम में खर्चे जैसे हेलिकॉप्टर से घूमते रहना,जनता की भीड़ को ट्रैक्टर में लाने ले जाने का खर्चा, टेंट और रेस्ट हाउस और खान पान और रुकने का खर्चा,इत्यादि होता हैं। ये सब के अलावा अधिकारी 10 दिन पहले से ही सारा काम छोड़के सिर्फ़ मुख्यमंत्री के आवभगत की तैयारी में लगे रहते हैं।और इस कार्यक्रम में होता क्या हैं ?? सिर्फ़ आसपास के 2-3 गाँव के लोग जमा होते हैं जिनको अपनी समस्या बताने का तो मौक़ा ही नहीं मिलता।पहले से सेट कुछ ग्रामीण को उठा के माइक देके पहले से रटा रटाया बात कहलवाते हैं कि कैसे गोबर बेच के धनवान हो गए।बाकि आई जनता को तो अपनी समस्या बताने का मौक़ा ही नहीं देते कि कही कोई उठ के सरकार की पोल ना खोल दे जैसे सूरजपुर और कोरिया ज़िले में हुआ।इसके बाद मुख्यमंत्री 8-10 छोटे छोटे काम का घोषणा करते हैं । कुछ लाख रुपए के ये छोटे छोटे काम विधायक और सरपंच के घोषणा करने लायक़ काम होते हैं पर मुख्यमंत्री इतनी दूर आते हैं। काम की स्वीकृति करते हैं तो विधानसभा के बस 3 गाँव के लिए।विधानसभा में क्या बस 3 गाँव ही होते हैं ?? बाकि गाँव में क्या समस्या नहीं होती ?? इसी से पता चल जाता है की ये भेंट-मुलाक़ात का कार्यक्रम सिर्फ़ दिखावा और टीवी में प्रचार-प्रसार के लिए होता हैं।जैसे जनता तो बेवक़ूफ़ हैं उसको समझ में नहीं आता। आख़िर कौन गोबर दिमाग़ का आदमी मुख्यमंत्री को ऐसे सलाह दे रहा हैं ??

छत्तीसगढ़ के वित्तीय कुप्रबंधन और अकुशल प्रशासनिक नेता के वजह से लगभग सभी वर्ग आंदोलन कर रहा हैं।पहले हर ज़िले में खाद के कमी के चलते किसानो ने आंदोलन किया।उसके बाद प्रदेश के शिक्षक और कार्यालीन कर्मचारी महँगाई भत्ता के लिए रायपुर में बड़ा आंदोलन किए जिनसे मुख्यमंत्री मिले तक नहीं।पूरे भारत देश में सिर्फ़ छत्तीसगढ़ ही ऐसा राज्य हैं जो कंगाली के चलते अपने कर्मचारियों को पूरा तनख़्वा नहीं दे पा रहा। छत्तीसगढ़ के इतिहास में पहली बार 100 कर्मचारी संघठन एक साथ आंदोलन किए।कर्मचारियों में सरकार के मुखिया के ख़िलाफ़ ज़बरदस्त ग़ुस्सा हैं क्योंकि सारा कर्ताधर्ता तो अभी वही हैं।इसके बाद प्रदेश के 1 लाख बेरोज़गार युवा रायपुर में सीएम हाउस का घेराव किये।अगर चपरासी के 91 पद के लिए 2 लाख से ज़्यादा आवेदन आते है तो समझ सकते हैं क्या हालत हैं इस टपोरी सरकार की।इसके बाद स्कूल सफ़ाई कर्मचारी, आँगनबाड़ी कार्यकर्ता और अब सरपंच सीएम हाउस का घेराव किए और रायपुर में ही डटे हुए हैं।सरपंच गाँव के प्रतिनिधि होते हैं और सरकार गाँव में सारा काम इन्ही के माध्यम से करती हैं।अगर प्रदेश के सरपंच ही आंदोलन में लगे हैं तो फिर गाँव में कोई काम नहीं हो रहा हैं। 4 साल से सरकार इनको सिर्फ़ गौठान और गोबर ख़रीदी का काम करवा रही हैं जिससे ये भी अब त्रस्त हो चुके हैं। गाँव में कोई दूसरा विकास का काम हो नहीं रहा।गाली खा रहे हैं बेचारे सरपंच।पर वो कर भी क्या सकते हैं जब सरकार ही नमूना हैं। कोई बजट ही नहीं हैं इस कंगाल सरकार के पास सिवा दूसरे राज्यों में चुनाव सम्पन्न कराने। केंद्र सरकार की ऐसी योजनाएँ जिससे ग्रामीण लोगों को बहुत फ़ायदा हो सकता था उसको पप्पू भक्तों ने लागू ही नहीं करने दिया। परिणामस्वरूप 16 लाख बेघर परिवारों के लिए पक्का आवास नहीं बन पाया। वैसे ही जल जीवन मिशन और आयुष्मान योजना का बँटाधार हो गया। पप्पू भक्ति ज़्यादा मायने रखती हैं या ग्रामीण का हित ?? बस गोबर-गोबर करके प्रचार प्रसार किया जा रहा। जब दुनिया इन्फ़्रास्ट्रक्चर, इन्वेस्टमेंट और स्किल्ड जॉब की बात कर रही तो हम बस गोबर का काम कर रहे। एक आदमी के ज़िद में पूरा छत्तीसगढ़ भुगत रहा हैं।हर वर्ग इस गोबर सरकार से मुक्ति चाहती हैं।अंतागढ़ के जनपद सीईओं ने तो सरकार का कपड़ा ही उतार के रख दिया। 4 साल से खुद यही काम कर रहे कर्मचारी बोल रहे कि गोबर से किसानों को कोई फ़ायदा नहीं हो रहा।बस अपना फ़ायदा करने के लिए ये प्रचार करवाया जाता हैं। बिहार में चारा घोटाला से भी बड़ा घोटाला होगा ये गौठान और गोबर का जुमला।हर गाँव में करोड़ों का गौठान बना के रखे हैं जो ख़ाली पड़ा हैं और गाँव के रोड और स्कूल की धज्जियाँ उड़ी हुई हैं।वैसे ही किसानो को 2500 प्रति क्विंटल जो दिया जा रहा उससे भी कुछ फ़ायदा नहीं।90% से ज़्यादा किसान तो छोटे हैं जिनके पास 5-10 एकड़ का ही ज़मीन होता हैं। अगर साल भर में 15-20 हज़ार रुपये का अतिरिक्त फ़ायदा हो भी जाता हैं तो उससे भला किसान के पारिवारिक स्थिति में क्या ही बदलाव आ जाएगा। उतना तो वो 3 महीने मनरेगा का काम करके कमा सकते हैं। धान के बढ़े हुए एमएसपी से सिर्फ़ बड़े किसानो को फ़ायदा हो रहा हैं।

जे.पी.अग्रवाल की रिपोर्ट


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