विप्र की रचनाओं में रचा-बसाहै छत्तीसगढ़ियापन:साहू

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विप्र की रचनाओं में रचा-बसाहै छत्तीसगढ़ियापन:साहू

द्वारिका प्रसाद तिवारी विप्र स्मृति संवाद में याद किया व्यक्तित्व व कृतित्व


बिलासपुर। आदिवासी लोक कला अकादमी छत्तीसगढ़ संस्कृति परिषद संस्कृति विभाग की ओर से द्वारिका प्रसाद तिवारी विप्र स्मृति संवाद कार्यक्रम 29 जनवरी रविवार की शाम साईं आनंदम गोकुलधाम उसलापुर बिलासपुर में आयोजित किया गया। इस दौरान वक्ताओं ने स्व. तिवारी के व्यक्तित्व व कृतित्व को याद किया। शुरुआत में स्वागत भाषण देते हुए अकादमी के अध्यक्ष नवल शुक्ल ने कहा कि 6 जुलाई 1908 को ‘जूना’ बिलासपुर में जन्में द्वारिका प्रसाद तिवारी ‘विप्र’ का 14-15 वर्ष की आयु में अंचल की लोक परंपराओं तथा लोकगीतों की ओर रुझान हुआ। 
शुरू में ब्रजभाषा और खड़ी बोली में रचना करते थे। बाद में उन्होंने छत्तीसगढ़ी में लिखना शुरू किया। सन् 1934 में आपकी एक छोटी सी पुस्तिका छत्तीसगढ़ी भाषा में “कुछू कहीं” नाम की प्रकाशित हुई। उसमें मात्र 10 गीत ही थे। लेकिन लोकगीतों की धुन पर नव आयाम का संदेश लिए हुए थे। आगे चलकर विप्र की पुस्तिका ‘सुराज गीत’, ‘गाँधी गीत’,‘योजना गीत’, ‘फागुन गीत’, ‘डबकत गीत’ नाम की प्रकाशित हुई। आपकी अन्य पुस्तके राम अउ केंवट संग्रह, कांग्रेस विजय आल्हा, शिव-स्तुति, क्रांति प्रवेश, गोस्वामी तुलसीदास (जीवनी), महाकवि कालिदास कीर्ति हैं। 
नवल शुक्ल ने कहा कि आज जरूरत विप्र की रचनाओं को ज्यादा से ज्यादा नई पीढ़ी तक पहुंचाने की है, जिससे आज की पीढ़ी अपनी माटी से जुड़ी रचनाओं से और ज्यादा करीब हो सके। अध्यक्षता कर रहे रायगढ़ के बिहारी लाल साहू ने कहा कि विप्र की छत्तीसगढ़ी रचनाएं छत्तीसगढ़ की मानक भाषा का प्रतिनिधित्व करती हैं। उनकी रचनाओं में छत्तीसगढ़ियापन रचा बसा है। इसपर लगातार गोठियाना चाहिए।बलदेव प्रसाद मिश्र का उल्लेख करते हुए डॉ. रमेश सोनी ने कहा कि उन्होंने विप्र को बहुत ऊंचा दर्जा दिया है और कहा है कि विप्र ने अनेक साहित्य साधकों को सम्मान,प्रेरणा और प्रोत्साहन दिया है। जिस कारण छत्तीसगढ़ी रचनाएं समृद्ध होती रही हैं। इस अवसर पर मयंक दुबे,ओमप्रकाश भट्ट,अमृतलाल पाठक,बुधराम यादव,जागरण डहरे, भूप सिंह,शैलेंद्र गुप्त,रेखराम साहू, सनत तिवारी,मनीषा भट्ट,कल्याणी तिवारी,सुनीता वर्मा और ऊषा लता सहित नगर के साहित्य प्रेमी बड़ी संख्या में उपस्थित थे।


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